Problem of agricultural and industrial labour of india.
*** कृषि श्रमिक से आशय***
कृषि श्रमिक कृषि के क्षेत्र में मजदूरी का कार्य करता है तथा जिसकी आय का अधिकांश भाग कृषि में में मजदूरी करने से ही प्राप्त होता है कृषि श्रमिक को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कृषि श्रमिक उस व्यक्ति को कहते हैं जो किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पर केवल एक श्रमिक के रूप में कार्य करता है कार्य के संचालन देख - रेख या जोखिम से उसका कोई संबंध नहीं होता तथा उसे अपने परिश्रम के बदले में नगद या फसल के रूप में केवल मजदूरी प्राप्त होती है।
***भारत में कृषि श्रमिकों की समस्याएं***
1. मौसमी रोजगार- कृषि एक मौसमी व्यवसाय है इसमें श्रमिकों की मांग फसल की बुवाई व कटाई तक ही सीमित रहती है अनुमान है कि पुरुष श्रमिकों को 197 दिन स्त्री श्रमिकों को 141 दिन तथा बाल श्रमिकों को 204 दिन ही काम मिलता है परंतु आधुनिक समय में बहुफसली कार्यक्रमों के अंतर्गत कृषि में रोजगार बढ़ता जा रहा है।
2. ऋण ग्रस्तता- भारत की अधिकांश कृषि श्रमिक ऋण ग्रस्तता हैं वह अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति एवं अन्य उपभोग कार्यों के लिए महाजनों से ऋण लेते हैं जिस में निरंतर वृद्धि होती जाती है और कृषि श्रमिक जीवन भर ऋण ग्रस्त रहता है ऋण ग्रस्तता का एक महत्वपूर्ण कारण उसकी गरीबी है।
3. निम्न मजदूरी तथा निम्न जीवन स्तर - भारत में कृषि श्रमिकों को बहुत कम मजदूरी मिलती है इससे अपनी आवश्यक आवश्यकताएं को भी पूरी नहीं कर पाते ऐसी स्थिति में उनकी कार्य क्षमता तथा जीवन स्तर गिर जाता है न्यूनतम मजदूरी अधिनियम को अभी कृषि श्रमिकों पर प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सकता है।
4. बेगार लेने की समस्या - अधिकांश कृषि श्रमिक ऋण ग्रस्त होते हैं ऋण ग्रस्त होने के कारण उन्हें भू स्वामियों के यहां बेगार के रूप में कार्य करना पड़ता है यद्यपि सरकार ने बेगार लेने को कानूनी अपराध घोषित कर दिया है परंतु फिर भी समस्या व्यापक रूप से आज भी विद्यमान है।
5. आवास की समस्या - अधिकांश कृषि श्रमिकों के पास रहने के लिए कोई स्थान नहीं है वह भूमि पति या पंचायत की बेकार पड़ी भूमि पर झोपड़ी या कच्चा मकान बनाकर अस्थाई रूप से निवास करते हैं इसका उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
6. सहायक धन्धों की कमी - कृषि श्रमिकों के लिए अन्य सहायक धन्धों का अभाव है अतः कृषि फसल के नष्ट हो जाने के उपरांत उनके पास कोई दूसरा कार्य नहीं होता है।
7. मशीनीकरण से बेकारी की समस्या- आधुनिक समय में कृषि में आधुनिक मशीनों यंत्रों एवं तकनीक का प्रयोग हो रहा है मशीनें श्रम को प्रतिस्थापित कर रही हैं जिससे निरंतर बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है।
*** कृषि श्रमिक से आशय***
कृषि श्रमिक कृषि के क्षेत्र में मजदूरी का कार्य करता है तथा जिसकी आय का अधिकांश भाग कृषि में में मजदूरी करने से ही प्राप्त होता है कृषि श्रमिक को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कृषि श्रमिक उस व्यक्ति को कहते हैं जो किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पर केवल एक श्रमिक के रूप में कार्य करता है कार्य के संचालन देख - रेख या जोखिम से उसका कोई संबंध नहीं होता तथा उसे अपने परिश्रम के बदले में नगद या फसल के रूप में केवल मजदूरी प्राप्त होती है।
![]() |
Agriculture |
***भारत में कृषि श्रमिकों की समस्याएं***
1. मौसमी रोजगार- कृषि एक मौसमी व्यवसाय है इसमें श्रमिकों की मांग फसल की बुवाई व कटाई तक ही सीमित रहती है अनुमान है कि पुरुष श्रमिकों को 197 दिन स्त्री श्रमिकों को 141 दिन तथा बाल श्रमिकों को 204 दिन ही काम मिलता है परंतु आधुनिक समय में बहुफसली कार्यक्रमों के अंतर्गत कृषि में रोजगार बढ़ता जा रहा है।
2. ऋण ग्रस्तता- भारत की अधिकांश कृषि श्रमिक ऋण ग्रस्तता हैं वह अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति एवं अन्य उपभोग कार्यों के लिए महाजनों से ऋण लेते हैं जिस में निरंतर वृद्धि होती जाती है और कृषि श्रमिक जीवन भर ऋण ग्रस्त रहता है ऋण ग्रस्तता का एक महत्वपूर्ण कारण उसकी गरीबी है।
3. निम्न मजदूरी तथा निम्न जीवन स्तर - भारत में कृषि श्रमिकों को बहुत कम मजदूरी मिलती है इससे अपनी आवश्यक आवश्यकताएं को भी पूरी नहीं कर पाते ऐसी स्थिति में उनकी कार्य क्षमता तथा जीवन स्तर गिर जाता है न्यूनतम मजदूरी अधिनियम को अभी कृषि श्रमिकों पर प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सकता है।
4. बेगार लेने की समस्या - अधिकांश कृषि श्रमिक ऋण ग्रस्त होते हैं ऋण ग्रस्त होने के कारण उन्हें भू स्वामियों के यहां बेगार के रूप में कार्य करना पड़ता है यद्यपि सरकार ने बेगार लेने को कानूनी अपराध घोषित कर दिया है परंतु फिर भी समस्या व्यापक रूप से आज भी विद्यमान है।
5. आवास की समस्या - अधिकांश कृषि श्रमिकों के पास रहने के लिए कोई स्थान नहीं है वह भूमि पति या पंचायत की बेकार पड़ी भूमि पर झोपड़ी या कच्चा मकान बनाकर अस्थाई रूप से निवास करते हैं इसका उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
6. सहायक धन्धों की कमी - कृषि श्रमिकों के लिए अन्य सहायक धन्धों का अभाव है अतः कृषि फसल के नष्ट हो जाने के उपरांत उनके पास कोई दूसरा कार्य नहीं होता है।
7. मशीनीकरण से बेकारी की समस्या- आधुनिक समय में कृषि में आधुनिक मशीनों यंत्रों एवं तकनीक का प्रयोग हो रहा है मशीनें श्रम को प्रतिस्थापित कर रही हैं जिससे निरंतर बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है।
Comments
Post a Comment